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Shanti stupa rajgir |
मौसम जब गर्म हो, तब हिल स्टेशन, हरे-भरे पहाड़ और झरने ही याद आते हैं। बिहार राज्य का बड़ा भू-भाग बेशक समतल है, लेकिन मध्य बिहार में राजगीर और आसपास के पठारी क्षेत्र वर्ष भर पर्यटकों को आकर्षित करते रहते हैं। अपेक्षाकृत स्वच्छ वातावरण, हरियाली, गाहे-बगाहे बादलों का मंडराना मौसम को खुशनुमा बनाए रखता है। ऐसे में जब इरादा शहर के कोलाहल से दूर, पहाड़ों व झरने के समीप वीकेंड मनाने का हो, तो राजगीर, नालंदा, पावापुरी, ककोलत इत्यादि की सैर की योजना बना सकते हैं। यहां न सिर्फ ऐतिहासिक घरोहर, संस्कृति, खानपान, बल्कि गर्म एवं शीतल जल के कुंड व् जलप्रपात आपको अविस्मरणीय यादों से भर देगें।
जरासंध से लेकर बिम्बिसार के निशान
कहते हैं सफर का जितना आनंद सड़क मार्ग में आता हैं, उतना ट्रेन या हवाई यात्रा से नहीं मिलता है। इसलिए राजगीर जाना हो, तो पटना से एक अच्छी एसयुवी या टैक्सी लेकर डेढ़ से दो घंटे में अपने गंतव्य तक पहुंच सकते हैं। नालंदा जिले में स्थित राजगीर कभी मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी। बाद में यहां मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ। पौराणिक साहित्य के अनुसार, यह ब्रहम की पवित्र यज्ञ भूमि, जैन तीर्थकर महावीर और भगवान बुद्ध की साधनाभूमि रहा है। वेद, पुराण, महाभारत, वाल्मीकि रामायण सभी में इसका उल्लख आता है। एक कथा यह भी प्रचलित है कि जरासंध ने श्रीकृष्ण की यहीं पराजित कर उन्हें मथुरा से द्वारिका जाने को विवश किया था। जानकारों का मानना है कि प्राचीन काल में वैभव पर्वत पर ही जरासंध के सोने का खजाना था। कहा जाता है कि अब भी इस पर्वत की गुफा के अंदर अतुल मात्रा में सोना छुपा है। स्वर्ण भंडार के पत्थर के दरवाजे पर उसे खोलने का रहस्य किसी गुफा भाषा (शंख लिपि) में खुदा भी हुआ है। यह लिपि बिन्दुसार के शासन काल में चला करती थी। यहां बांसों का वन 'वेणुवन विहार' भी है, जिसे बिम्बिसार ने भगवान बुद्ध के रहने के लिए बनवाया था। वैभव पर्वत की सीढ़ियों पर ही गर्म जल की सप्तधारा बहती है। यह जल सप्तकर्णी गुफाओं से आता है। मान्यता है कि इन झरनों के पानी में कई चिकित्सकीय गुण हैं। इनमें 'ब्रहमकुंड' का पानी सबसे गर्म (45 डिग्री से.) होता है।
शांति स्तूप में बिताएं सुकून के क्षण
हालांकि, अब राजगीर एक प्राचीन बौद्ध पर्यटन स्थल के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। सदियों पहले यहां के गृद्धकूट पर्वत पर महात्मा बुद्ध ने 'कमाल सूत्र' का उपदेश दिया था। इसी चोटी पर एक विशाल 'पीस पगोडा' यानी 'शांति स्तूप' और निप्पोनजन म्योहोजी मंदिर है, जिसका निर्माण जापान के बौद्ध भिक्षु और निप्पोनजन म्योहोजी के संस्थापक निचिदात्सु फुजी के निर्देश में हुआ था। सफेद संगमरमर से बने इस स्तूप के चारों कोणों पर स्वर्ण रंग में महात्मा बुद्ध की चार प्रतिमाएं भिन्न-भिन्न मुद्राओं में स्थापित हैं। स्तूप से थोड़ा नीचे उतरेंगे, तो विशालकाय घंटी आपका ध्यान खींच लेगी। यह घंटी प्रार्थना के समय बजाई जाती थी। कुजी महात्मा गांधी से बेहद प्रेरित था। उनसे मिलने के बाद ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन अहिंसा के नाम समर्पित कर दिया था। पहले शांति स्तूप तक पहुंचने के लिए पैदल चढ़ाई करनी पड़ती थी। लेकिन 'रज्जु मार्ग' यानी रोपवे से लोहे के खुले डब्बेनुमा बक्से में बने सिंगल सहित पर बैठे यात्रा का रोमांच ही अलग होता है। 'शांति स्तूप' पर्वत के समीप ही 'घोडा कटोरा' झील है। घोड़े के आकार के इस झील तक तांगे से पहुंचा जा सकता है। इस विशाल झील में बोटिंग का आनंद भी ले सकते हैं।
नालंदा के इतिहास से साक्षात्कार
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ककोलत जलप्रपात का आनंद
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Kakolat Jalprapat |
कैसे जाए राजगीर/ ककोलत
वायुमार्ग: राजगीर से निकटतम हवाईअड्डा पटना है, जबकि गया एयरपोर्ट से ककोलत समीप पड़ेगा। लेकिन यहां विमानों का नियमित आना-जाना नहीं होने से पटना हवाई अड्डे पर उत्तर कर सड़क से जाना होगा।
रेलमार्ग: राजगीर के लिए पटना एवं दिल्ली से सीधी रेल सेवा है।
सड़क मार्ग: पटना, गया, दिल्ली एवं कोलकाता से सीधा संपर्क। बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम पटना स्थित अपने कार्यालय से नालंदा एवं राजगीर के लिए वातानुकूलित टूरिस्ट बस एवं टैक्सी सेवा भी उपलब्ध कराता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 31 पर स्थित होने के कारण ककोलत देश के सभी भागों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।
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